Wednesday 28 September 2016

सफ़र

एक सफ़र ऐसा हो ,
जिसकी कोई मंज़िल ना हो
कोसों लंबा सफ़र
कभी ना खत्म होने वाला
मीलो मील चलने वाला
दिन को रात और
रात को दिन में बदलते देखने वाला
जवानी को बुढ़ापे में
बदलते देखता सफ़र
अच्छे बुरे  वक़्त को
महसूस करने वाला
ख़ुशी और ग़मो से कटता सफ़र
मैं ज़िंदगी भर इस सफ़र में
चलने को तैयार हूँ
लेकिन फिर भी थमा हूँ
शायद अकेला जाने से डरता हूँ
गर तुम हाथ थाम लो
तो कल ही निकल पडू मै
इस कभी ना खत्म होने वाले सफ़र पर.... .....असीम

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